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ऐसे तो बेराजगारों की फौज बढ़ती ही जाएगी

जनमत
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साठ के दशक में शिक्षा में गुणात्मक सुधार के लिए गठित कोठारी आयोग ने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि समान शिक्षा के लिए समान स्कूल के नियम पर ही एक ऐसी राष्ट्रीय व्यवस्था तैयार हो सकेगी जहां सभी तबके के बच्चे एक साथ पढ़ेंगे. अगर ऐसा नहीं हुआ तो समाज के ताकतवर लोग सरकारी स्कूल से भागकर प्राइवेट स्कूलों का रुख करेंगे और पूरी प्रणाली ही छिन्न-भिन्न हो जाएगी।
लेकिन सरकार ने कोठारी आयोग की रिपोर्ट को न केवल ठंडे बस्ते में डाल दिया, बल्कि ऐसी नीतियां अपनाईं कि समान शिक्षा की दूर-दूर तक गुंजाइश ही नहीं रह गई। अब देखिए ना, केन्द्रीय कर्मचारियों के बच्चों के लिए केन्द्रीय विद्यालय हैं, सैनिको के बच्चों के लिए सैनिक स्कूल हैं, तो गांवों में मेरिट लिस्ट के बच्चों के लिए नवोदय स्कूल हैं। सर्वहारा के लिए बड़ी संख्या सरकारी स्कूल हैं, जहां की शिक्षा का स्तर सर्वविदित है। साफ है कि शिक्षा कई परतों में बंट चुकी है। …और कोठारी आयोग की आशंका के अनुरूप प्राइवेट स्कूल फल-फूल रहे हैं।
अपने देश की दोषपूर्ण शिक्षा पद्धति की देन है कि स्नातक तक की शिक्षा ग्रहण करने वाले 47 फीसदी युवा नौकरी के लायक ही नहीं रहते। योजना आयोग के आंकड़े के मुताबिक युवा भारत के 18 से 45 साल तक के 47 करोड़ युवा बेरोजगार हैं। जिस देश में प्रतिदिन 25-30 रूपए की आय वाले लोगों की संख्या 80 फीसदी तक है, वहां महंगी और आय वर्ग में बांटी गई शिक्षा पद्धति से देश के सर्वहारा का कैसे भला होगा?

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